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आगे-आगे देखिए होता है क्या-jagran junction forum

पर्दा
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चुनाव परिणाम के तुरंत बाद से मीडिया और सोशल साइट्स पर रंग-बिरंगी प्रतिक्रियाओं और आशंकाओं का बाज़ार गर्म है। कुछ लोग अति उत्साह के शिकार हैं तो कुछ बेवजह हद से ज्यादा भयभीत। उत्तर प्रदेश ने दशकों तक कांग्रेस का शासन देखा। जनता दल को गले लगाया। बीजेपी को मौका दिया। मायावती पर विश्वास करने से पहले करीब डेढ़ दशकों तक जनता ऊहापोह की स्थिति में रही। फिर कथित सोशल इंजीनियरिंग के सहारे मायावती को मौका दिया। जनता तो चुनती ही रही है, हमेशा ज्यादा बेहतर पर ध्यान रहा है। मायावती के पार्क प्रेम और अराजक शासन तंत्र के साथ नेताओं और जन प्रतिनिधियों के पापकर्म को झेलने-समझने के बाद अब फिर से समाजवादी पार्टी की तरफ लौटी है।

समाजवादी पार्टी अमर सिंह के दौर वाली कार्य संस्कृति से उबर चुकी है। सत्ता की कमान भी मुलायम सिंह की बजाय इंजीनियर अखिलेश के हाथों में है। सबसे बड़ी बात कि वोटर्स ने सपा को एकमुश्त बहुमत देकर, रचनात्मक कामों के लिए पूरा स्पेस दे दिया है। बकौल अखिलेश, चुनावी घोषणा पत्र के सहारे जितने भी वादे किए गए हैं, पूरे किए जाएंगे। जहां तक क़ानून व्यवस्था की बात है तो इस मसले पर उन्होंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि इस मामले में कोई समझौता नहीं होगा। जो जैसा करेंगे, उन्हें वैसा ही भरना भी होगा।

हां, चुनाव परिणामों के तुरंत बाद कहीं विजय जुलूस में फायरिंग के कारण किसी बच्चे की जान चली गई तो कहीं किसी प्रत्याशी ने चुनाव के दौरान वाली खुन्नस निकालने के लिए प्रतिपक्षी पर हल्ला बोल दिया। कुछ एक घटनाएं हुईं और हम परेशान हो उठे। प्रश्न उठने लगे। लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। जबकि सच तो यह है कि अभी शपथ ग्रहण भी नहीं हुआ है। जब आपने विश्वास जताया है तो समय भी दीजिए। अखिलेश ने यह कहकर वैसे ही उम्मीद जगा दी है कि बदले की कार्रवाई नहीं होगी (जैसा कि पहले यूपी के लिए आम हुआ करता था। सत्ता बदलने के बाद पूर्ववर्ती सरकार के कामकाज से लेकर योजनाओं तक की बखिया उधेड़ना। जांच-वांच का नाटक और न जाने क्या-क्या..)।

लोकसभा चुनाव के दौरान कम्प्यूटर एजुकेशन का विरोध, जाति और धर्म के नाम पर वोटर्स को गोलबंद करने की कवायदों में जुटी रहनेवाली सपा, बॉलीवुड अभिनेता और अभिनेत्रियों को बल पर भीड़ जुटाने वाली सपा.., ये सब तो अब पुरानी बातें हो गई हैं। विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने जिस तरह लोगों का विश्वास सकारात्मक वादों और इरादों के सहारे जीता। उससे उम्मीद तो बढ़ जाती है। पार्टी की छवि तो पहले ही बदल चुकी है। अमरकथा के अंत के बाद सपा बिल्कुल नये लुक में है। नेतृत्व का जिम्मा मुलायम सिंह ने अखिलेश को सौंप दिया है। अखिलेश सुलझे इरादों के साथ बदलाव की उम्मीद लेकर आए हैं। सपा विधायक के भाई ने जीत के तुरंत बाद सील गोदाम को खोल दिया था, लेकिन बिना देर किए, उसे दोबारा सील भी कर दिया गया। तो इस लिहाज से देखें तो आसार ज्यादा बुरे नज़र नहीं आते। अब जहां तक गुंडाराज के लौटने के प्रश्न है तो ये शब्द हमने गढ़े हैं। मुझे तो आज तक ये बात ही समझ में नहीं आई कि कैसे कहीं सुशासन आ जाता है और कैसे कहीं गुंडाराज!

ख़ैर, अभी बेवजह शोर मचाने, भयभीत होने या रोने का वक्त नहीं है। अभी तो ये देखने का वक्त है कि बहुमत के साथ दशकों बाद सत्ता में लौटी सपा उत्तर प्रदेश की स्थिति में सुधार का कौन सा नुस्खा अपनाती है। बेरोजगार हाथों को काम मिलता है या नहीं। भूखे पेट को अन्न मिलता है या नहीं। दलित और ग़रीब तबके के लोगों को पुलिस और कानून कितना प्रोटेक्शन देती है? वैसे भी अखिलेश की जीत के बाद की जो भाषा है, उस लिहाज से देखें तो गुंडाराज जैसी नौबत नहीं आने वाली। वैसे भी पार्टी जब मज़बूत हो तो सरकार भी मज़बूत होती है और मज़बूत सरकार को कभी ब्लैकमेल नहीं किया जा सकता। जब सरकार ब्लैकमेलिंग का शिकार नहीं होगी तो वह जनहित का भी ख्याल रखेगी। अपराध पर अंकुश भी लगेगा और कोई दबंग जन प्रतिनिधि अपनी घरेलू नौकरानी से बलात्कार कर उस पर चोरी का आरोप भी नहीं लगा सकेगा। फिलहात तो बस इतना ही कि-

इब्तेदा-ए-इश्क है रोता है क्या

आगे-आगे देखिए होता है क्या

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