Menu
blogid : 9789 postid : 21

दी गुड, दा वेरी गुड

पर्दा
पर्दा
  • 46 Posts
  • 343 Comments

भैया न तो मैं अर्थशास्त्री हूँ और न ही आर्थिक विश्लेषकों से कभी अपनी यारी-दोस्ती ही रही है। साहित्य का छात्र तो रहा लेकिन कभी सेवी नहीं बन सका। लेकिन बजट पर बात करने से ख़ुद को रोक नहीं पा रहा हूँ। बात शुरू करने से पहले ही सफाई इसलिए दे दी है ताकि आप हमारी खिंचाई न करें।(अभी ऐसा लिखते वक्त मेरे चेहरे पर सचमुच की मुस्कान है!)

ममता दी के भाई ने जब मेरे गांव लौटने का रास्ता बंद कर दिया था, तभी मेरे जहन में ये बात बार-बार टहोके मार रही थी कि प्रणब दा भी अब बंधुआगिरी कराने से बाज़ नहीं आने वाले… उन्होंने हमें निराश भी नहीं किया है। बल्कि उनका हृदय इतना उदार है कि उम्मीद से कहीं ज्यादा कष्ट हमारी झोली में डाल दिए हैं। और तो और ऑफर ऐसा तगड़ा-तगड़ा है कि अचंभे में हूँ।

सोना महंगा, ज़ेवर सस्ता। इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान सस्ता, पार्ट्स महंगा। बिहार सरकार ने बजट में फटे कपड़े को सीने में प्रयुक्त होने वाली सुई को सस्ता कर दिया था। केन्द्र सरकार ने ग़रीब जनता पर उपकार करते हुए माचिस पर भारी छूट की घोषणा कर, बड़ी समस्या हल कर दी है। भई आम आदमी तो आटा-चावल का जुगाड़ किसी तरह कर भी ले, लेकिन आप ही बताएं, महंगाई के इस कलिकाल में माचिस और सूई ख़रीदना मुश्किल है कि नहीं?

प्रणब दा संवेदनशील हैं। अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने महंगाई डायन की ढिठाई पर चिंता का इजहार किया है। लेकिन बेचारे करें तो क्या करें, महंगाई ठहरी स्त्री, उस पर हाथ कैसे छोड़ें? और महंगाई इतनी ढीठ है कि बेचारे दादा की झिझक और संकोच का दुरुपयोग करने पर तुली है। दादा के ऐन नज़र के सामने जनता की छाती पर मूंग दल रही है और दादा बेचारे निःसहाय अपने प्यारों पर इसका अत्याचार देखने-सहने को अभिशप्त।

देश में आतंकवाद और अपराध जैसी गंभीर समस्याएं हैं। आए दिन लूट-पाट, छीना-झपटी। आदमी को कभी माल का तो कभी जान का नुकसान। अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में भी बदनामी। दादा जानते हैं, झंझट की जड़, पैसा ही है। इसलिए उन्होंने अच्छा इंतजाम किया है, न किसी के पास पैसा रहेगा, न किसी के साथ कोई अपराध होगा। अपराधी भुक्खड़ों को लूटकर अपना इंसल्ट थोड़ी न करवाएंगे! इसलिए नौकरीपेशा लोगों को टैक्स में छूट देने की मूर्खता उन्होंने नहीं की है।

मेहनतकश हैं तो मेहनत कीजिए। दो वक्त की रोटी तो मिल ही जाएगी। भविष्य जब सरकार का सुरक्षित नहीं तो आम आदमी (वो भी नौकरीपेशा) भविष्य की चिंता क्यों करे? और अगर करना ही है तो ख़ुद से रूपये जोड़े और जुआ खेले। सरकार क्यों सूदख़ोरी को बढ़ावा दे। सूदख़ोरों के कारण तो देश कंगाल हुआ। अब फिर से वही ग़लती नहीं दोहराई जानी चाहिए। लिहाजा दादा ने क्रांतिकारी कदम उठाते हुए दो काम एक साथ कर दिए हैं। उन्होंने ईपीएफ पर ब्याज दर घटा दी है और ये भी कहा है कि अगर कमाना ही चाहते हो तो जाओ शेयर बाज़ार में सट्टा लगाओ। मुनाफ़ा हुआ तो हम टैक्स में छूट दे देंगे। वरना जुआ तो हारने के लिए होता ही है।

दीदी तो यूं ही दादा को परेशान करती रहती हैं। तीन वेदों के ज्ञाता ने जनहित में मेरे गांव का रास्ता बंद करवा दिया तो उन पर ख़फ़ा हो गईं। सुनने में आ रहा है कि दीदी किसी और को ट्रेन का ड्राइवर रखने वाली हैं। वैसे भी विद्वान आदमी से ड्राइविंग का काम, छीः छीः। लेकिन दीदी जिद्दी हैं, दादा समझदार हैं। दादा ने जो काम किया है। उसका अच्छा फल आनेवाली पीढ़ियों को मिलेगा। आप देखते रहना। लोग यूं ही दादा को बदनाम कर रहे हैं। और नहीं तो क्या! हम तो कहते हैं कि दी गुड बट दा… वेरी-वेरी गुड।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply