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मेरे नन्हे, ज्यादा दिनों का नाता नहीं तुझसे
अभी तो आया है, लेकिन है बड़ा जादूगर!
मेरे नन्हे, मेरे मन को तूने बांध लिया है
तेरे जाने ने मुझे जिन्दगी में पहली बार
अकेलेपन, सूनेपन और बेरंग जीवन का अर्थ
सीधे-सीधे और बेखटके ही समझा दिया है
तेरी सूरत आँखों में कुछ बेतरह जज़्ब है
जब भी सोचता हूँ..,
तू सोते में मुस्कराता
पोर-पोर के दर्द को अंगड़ाइयों में तोलता
कभी मानूस निगाहों से देखता
कभी कुछ अजीब सा मुँह बनाता
ठीक मेरी बगल में..,
बिस्तर पर लेटा नज़र आता है;
मेरे नन्हे, तेरे बदन और कपड़े की
तेल-सनी ख़ुश्बू बिस्तर में जज़्ब है
जब काम से लौटता हूँ
दरवाज़ा खोलता हूँ
वही ख़ुश्बू…
मेरा घर में इस्तकबाल करती है
मैं भींग जाता हूँ
तेरी तस्वीर उभर आती है
जानता हूँ..,
कुछ दिनों की बात है
अभी लौटकर आएगा
अपनी माँ के साथ
मैं चूमूंगा, पूछूंगा…
सब हाल-चाल
ये जानते हुए भी कि तू अभी
बोलने के क़ाबिल नहीं हुआ है
फिर भी मैं समझ सकूंगा
तुम्हारे ख़्यालात…
लेकिन अभी तू नहीं है
मेरे नन्हे, मैं जानता हूँ
कल को बड़ा होकर हँसेगा
अपने पापा के इस ख़्याल पर
लेकिन फिर भी…
मैंने तेरे जाने के बाद
बिस्तर का चादर नहीं बदला है
बिस्तर झाड़ने का भी मन नहीं
क्योंकि अभी लगता है कि तू है
यहीं कहीं मेरी बगल में लेटा
मेरा नन्हा फरिश्ता, मेरा बेटा
(कविता तब की है। जब मई 2010 में पत्नीश्री मेरे बेटे को लेकर मायके गई थीं। यानी बेटे के जन्म के कुल डेढ़ महीने बाद और उस वक्त पता नहीं दिल का क्या हाल हुआ था? और ये कविता जैसा कुछ किसी पन्ने पर खुद गया था। आज जबकि वो दो साल का हो चुका है। नंबर वन का शरारती भी…)
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