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लाम से लौटा सैनिक

पर्दा
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युद्ध की आशंका देखते ही इमरजेंसी छुट्टी लेकर सैनिक लाम से लौट आया। उसे ज़िन्दगी से मुहब्बत थी। वो पूरी दुनिया से प्यार करना चाहता था। वैसे भी इंटरनेट ने उसके अरमानों को पूरा करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। फेसबुक की मदद से ही वह रोज़ाना दुश्मन मुल्क के ख़िलाफ़ जंग जीतता रहा था। कई बार तो कुमुक और रसद नहीं मिलने के बावजूद उसने भूखे-प्यासे ही दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। उसमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। वह देश का हीरो था। स्पाईडर मैन टाईप का सुपर हीरो चाहता तो बन सकता था, लेकिन सुपर हीरो से पहले वाला नाम उसे कभी पसंद नहीं आय़ा।  उसे इस बात का गुमान था कि वह अपनी क़िस्म का बिल्कुल ही अकेला इंसान है। हालांकि उसका मानना था कि प्यार तभी तक ज़िन्दा रहता है, जब तक सांसें चलती रहती हैं। मानना तो उसका ये भी था कि इस बार का बसंत उसकी ज़िन्दगी में नई कोंपलों का बंदोबस्त करेगा। उसे अपने गांव के दक्षिण में आम के पेड़ों का बड़ा झबरीला बाग, नदी का किनारा, उसके दोनों छोरों पर अमर बेल सी उलझी झाड़ियों का सिलसिला और न जाने क्या-क्या पसंद थे। साथियों की नज़र में भगोड़ा और अपनी नज़र में बेहद होशियार सैनिक इस उम्मीद के साथ घर लौटा था कि अबके उससे सिर्फ मुलाकात और बात तक ही वह सीमित नहीं रहेगा। दुनिया तो बिंदास और बेहतर तरीके से जीने के लिए ही प्रकृति ने दी है। यहां वर्जनाओं का क्या काम? लेकिन… गांव की सीमा रेखा लांघते ही उसके घुटने मुड़ गए थे, वो मूर्छित हो ज़मीन पर लुढ़क गया था। उसके बेहिस पड़े जिस्म के पास ही से कोई नई -नवेली दुल्हन डोली में सवार आहिस्ते से गुजर गई थी। शायद वह ससुराल जा रही थी। यह दृश्य किसी नाटक का सा था। बसंत की आंखें थोड़ी कनिया गई थीं। होठों पर भी एक खास किस्म की मुस्कान रेंगने लगी थी। सैनिक लाम से लौटा था। उसके हाथ में हथियार नहीं थे। मूंछों के झुरमुट को सुरक्षित जगह समझ चींटियों ने डेरा जमाना शुरू कर दिया था।

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