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गांव का भूत

पर्दा
पर्दा
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वह गांव से शहर आया था। शहरी साथियों ने कई बार लैंड-लाईन पर फोन किया था। कहा था- यार शहर आओ, जंगल में कहां फंसे हो। हुनर है, इल्म है। क़द्रदाँ शहर में बहुत मिलेंगे। गांव में रहे तो बस मास्टरी तक, वो भी रो-गाकर। दिल की ना-ना को उसने जबरन दिमाग की हाँ से चुप करा दिया था। शुरूआती रंग-ढंग ने ऐसा जादू चलाया कि पता नहीं कब, उसके अंदर जंगल उगने लगा। अब जबकि वह होश में आया है। गली-गली शहर ढूंढ रहा है। हालांकि इस कोशिश में शेर से लेकर सियार तक उसकी तरफ बढ़ने लगते हैं। वह चौंक कर पीछे हटता है। लोग कहते हैं पागल है। शुक्र है यहां बच्चों के पास पत्थर मारने की फुर्सत नहीं है। लेकिन उसे गांव जाने से डर लगता है।

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