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आत्मालाप-1
सीने में जलन सी हो रही है
होंठ फड़फड़ा रहे हैं…
अजीब सी बेचैनी सवार है
ज़ोर-ज़ोर से चीखना चाहता हूँ
लेकिन कहीं किसी कोने में दुबका बुज़दिल
डरा रहा है, ख़ौफ़ का छौना
सामने सींग चमकाता खड़ा है
कांपते होंठ भ से भूख लिखना चाहते हैं
लेकिन भय से भारत महान निकल जाता है
तड़पता दिल क से क्रांति चाहता है
लेकिन ख़ौफ व्यवस्था का कुत्ता है
मन का कचोट यहीं नहीं थमता
जज्बों पर मुर्दनी छाई है लेकिन आश्चर्य!
जिन्दाबाद-जिन्दाबाद चीख रहा हूँ
शायद भीड़ का हिस्सा होना
ज्यादा सहज और सुरक्षित है
काइयांपन हावी है, ढाढ़स बंधा रहा है
सबकुछ ठीक होने और होड़ का वक्त है
यही तो कह रहा है और मैं…!
शर्म आती है अब, ख़ुद के होने पर
लड़ नहीं सकते तो जीने का हक़!
क्या साहित्य की मर्यादा इजाज़त देती है?
थूकना चाहता हूं खुद के होने पर…
आत्मालाप-2
तुम ख़ुद महलों में रहते हो
हम रोटी मांगते हैं तो दुर-छी कहते हो
हमने तन ढंकने के लिए कपड़े मांगे
तो कंगला-भिखारी कहकर टरका दिया
हमने काम मांगा तो तुमने क्या कहा था?
याद तो होगा नहीं, चलो मैं ही बता दूं
हां, निकम्मा ही तो कहा था तुमने
हमने न्याय मांगा तो तुमने दावा किया
रामराज्य है तुम्हारे यहां, ये साजिश है
मैं किसी के बहकावे में बक रहा हूँ
तुम्हारी सफेदी में स्याही मिला रहा हूँ
जब तंग आ गया तो मुंह नोचना चाहा
तुमने अपने गुर्गों से पिटवाया था मुझे
देश के लिए खतरनाक करार दिया था
आतंकवादी बनाकर तुमने एनकाउंटर करवाया था
सभी जानते हैं फर्जी था…
फिर भी चुप रहे सबके सब
जानते हो क्यों?
तुमसे डरते थे सब
मालूम था, तुम खतरनाक हो
लेकिन तुम्हें तुम्हारे जननी की कसम
मैं जानता हूँ, उन्हें तुम्हीं ने बेचा है
और मौत पर तुमने मौन रखा था
शोक भी घोषित किया था- राष्ट्रीय
आत्मालाप-3
जब मेरी बहन बलात्कृत हो रही थी
जब मां को डायन करार दिया जा रहा था
पत्नी को बदचलन करार दिया जा रहा था
उसे सड़कों पर नंगा कर घसीटा जा रहा था
जब भाई को अपराधी बतलाया जा रहा था
जब मुझे गद्दार करार दिया जा रहा था
तुम्हारे हाथ में विकसित राष्ट्र का गौरव पत्र था
आत्मालाप-4
कुछ देश भक्तों ने अरबों की लागत से…
कुछ गगनचुंबी इमारतें खड़ी कर ली थीं
विश्व में राष्ट्र की समृद्धि का यश फैल रहा था
विध्वंसक अस्त्र-शस्त्र से आर्म्स डिपो भरे-पड़े थे
तुम पहले मोम थे, पिघलते थे वेदना से…
लेकिन वातानुकूलन के कारण अब अकड़ गए थे
देश बढ़ रहा था, राष्ट्रभक्त उद्योगपति चढ़ रहे थे
नित् सफलता और उपलब्धि की नयी सीढियाँ
माँ अपने भूखे बच्चे के लिए रोटी ढूंढ रही थी
तुम्हारे खानसामे के हाथों आबरू बेच रही थी
क्योंकि तुम्हारे खानसामे के नाम
महल से निकली बुहारन का कॉपी राईट था
गंदे नालों से हथेलियों पर समंदर जमाते
हम सभी सूख रहे थे, लुट रहे थे, टूट रहे थे
लेकिन तुम, हमारे मसीहा, आका, मालिक
तुम्हारी नज़र में तुम्हारे इस लोकतंत्र में…
सबकुछ डेमोक्रेटिक, परफेक्ट और राईट था
आत्मालाप-5
तुमने कहा था-
तुम्हारी लाख कोशिशों के बावजूद
हम सभ्यता का पाठ नहीं पढ़ सके
मुझे अफसोस है-
तुम्हारे सामने आईना था
लेकिन तुम तो अंधे थे ना!
वरना मुझे पूरा यकीन है
तुम्हारा जमीर जगता
और तुम खुदकुशी कर लेते
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