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(1)
ले आए ये कैसा प्याला
पिये बिना ही जग मतवाला
देख-देख आँखें चुँधियाईं
जग का ऐसा रूप निराला
कब से आँखें धधक रही हैं
जिगर में भड़की है ज्वाला
अभिव्यक्ति को भाव कहां कम
पर लगा जीभ पर भारी ताला
(2)
यहां-वहां अफरा-तफरी
गले में लटकी मौन की तख्ती
आँखों-आँखों में चीख रहे सब
दशा-दिशा भटकी-भटकी
(3)
सीख सखा की याद नहीं
पर हे गोविंद, हे गोविंद
स्थानांतरित हुआ सिर
कीचड़ में लिथड़ा मुखार्विंद
कूप में डूबा पूरा भारत
चीख रहे सब सिंध-सिंध
अटकलपच्चू सभावादी सब
बने एक्सपर्ट पी-पीकर रिंद
(4)
पेट की रोटी घटी, होठों की प्यास बढ़ी
उद्योग बढ़ा, देश बढ़ा, बात बढ़ी
कलवतिया वहीं पड़ी झोंपड़ी में
नेता बढ़ा, वोट बढ़े, जनता में साख़ बढ़ी
(5)
सड़क, स्कूल और अस्पताल
फीता काट हुए नेता नेहाल
पात-पात पर भ्रष्टाचार का कीड़ा
जनता लटकी डाल-डाल
(6)
सुरसा के शोहदों की बस्ती
सब चीज़ें हैं बिल्कुल सस्ती
डिब्बे में बंद छाछ और लस्सी
दहकता सूरज फिर भी मस्ती
(7)
उड़न खटोले से घूम-घूम
भरी सभा में झूम-झूम
नेता गढ़ते विकास कथा
जनता लेती सपने बून
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