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उमस और ऊब का माहौल
मन को कोंचते…
ख़्वाहिस को बढ़ाते…
बिल्कुल प्यास की तरह।
जबकि नल की टोटी
चिढ़ाती रहती है!
बूंद-बूंद पानी टपका कर…
हाथों की अंजुरी बना कर
ऊँकड़ूं बैठा, आगे को झुका…
नल की टोटी को देखना
और अंजुरी में पानी जमा होने की प्रक्रिया!
बड़ा ही अजीब भ्रम पैदा करती है
धैर्य के साथ इंतज़ार करता हूँ
लेकिन… अंजुरी भरती नहीं
नल से अनवरत् पानी का टपकना
पानी होने का संकेत तो करती है
लेकिन… अंजुरी भरती नहीं
उंगलियों के बीच की खाली जगह
(जो पता नहीं कैसे बची रह गई है!)
बूँदों को इकट्ठा नहीं होने देती
टोटी से छूटते ही हाथ में आती तो है
एक बूँद…
लेकिन दूसरी के टपकने से पहले ही
हाथ से टपक पड़ती है नीचे(?)
झुंझलाना गैरवाजिब लगता है
लेकिन सच कह रहा हूँ…
अंजुरी भरती नहीं!
पता नहीं, लोग कैसे कहते हैं
“बूँद-बूँद समुद्र बनता है”
यहां तो हाथ भींगते हैं
ज़ुबान और गला सूखता ही जाता है…
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