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दुखी मत हो! मेरे वर्दी वाले भाई! क्या हुआ जो तेरी बंदूक से निकली गोली मेरी निर्जीव सी पसलियों में उतर गई तो? दुखी मत हो! मेरे बंदूक वाले भाई! क्या हुआ जो तेरे नेज़े की धार ने फाड़ दिए हफ्तों से अन्नहीन-रसहीन मेरे खाली पेट! दुखी मत हो! मेरे टोपी वाले भाई! तुमने व्यवस्था बनाए रखने की शपथ ली और मेरा नंगा सिर खंडित हो गया तो क्या! दुखी मत हो! मेरे प्यारे भाई! तुमने सचमुच कुछ नहीं किया है मेरे साथ बंदूक तुम्हारी नहीं थी, वर्दी तुम्हारी नहीं थी नेज़े की धार या लाल फुदने वाली टोपी भी तो तुम्हारी नहीं थी... जब हाथ ही तुम्हारे नहीं थे तो तुम्हीं कहो भला, हथियार तुम्हारे कैसे होते! हाँ-हाँ, यक़ीन करो मेरे भाई! दुखी नहीं हूँ मैं! रोटी के एवज़ में व्यवस्था के पास गिरवी हाथ! जो कर सकते थे, वही किया, वही करते रहे हैं!! इसलिए दुखी मत हो! मेरे वर्दी वाले भाई! तुम में और मुझ में ज़्यादा फ़र्क़ है ही कहाँ! उन्होंने हम दोनों को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ चुना है कपड़ों का रंग बदल जाने से जिस्म नहीं बदलते ज़मीन पर मैं नहीं तो तुम पड़े होते! भाई अगर मानो तो एक इल्तेज़ा है! जब तुम्हारी गोलियों से शिथिल हो जाए मेरा रक्तहीन शरीर जब तुम्हारे नेज़े की धार मेरा सीना छलनी करने के बाद ले विराम जब विपन्नता के बाद भी उठे रहने की सज़ा पा ले मेरा नंगा सिर तब अपने बूटों की नफ़रत को अपने पैर पर हावी मत होने देना आपनी आँखों में उतर आए ख़ून को पोंछ आँसुओं के लिए जगह बना लेना हो सके तो कलगी वाली टोपी को क्षण भर के लिए सिर से उतार देना अपने कैम्प में लौटने के बाद जब उतार चुको वर्दी व्यवस्था का अंग होने की अकड़ को भी उतार देना दुखी मत होना मेरे प्यारे भाई! बस अपने सिरहाने तकिए के नीचे दबा लेना वो उम्मीद जो मेरी मौत के बाद तुम्हारे बूटों में लिथड़ी कैम्प तक चली आई है। ताकि व्यवस्था की मौत मारे जाने की ग्लानि हो सके कम मेरी आत्मा यह सोचकर हो सके निश्चिंत की मेरी हत्या व्यवस्था के हाथों कभी मुमकिन नहीं थी मेरा हत्यारा... मेरा अपना ही ख़ून, मेरा ही मजबूर भाई है! जिसके लिए मेरी मौत कभी गौरव की बात नहीं हो सकती! ******
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